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शहीद भगत सिंह की तस्वीर

Bhagat singh 1

भगत सिंह की शाम लाल द्वारा खींची गई मूल तस्वीर

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भगत सिंह की बनाई गई तस्वीर

 

मीडिया में भगत सिंह की प्रस्तुति के राजनीतिक, सामाजिक आयामों को समझने के लिए यह संक्षिप्त अध्ययन किया जा रहा है।

“मेरे पास भगत सिंह से जुड़ी 200 से ज़्यादा तस्वीरें हैं। इनमें उनकी प्रतिमाओं के अलावा किताबों और पत्रिकाओं में छपी और दफ़्तर वगैरह में लगी तस्वीरें शामिल हैं। ये तस्वीरें भारत के अलग-अलग कोनों के अलावा मारिशस, फिजी, अमरीका और कनाडा जैसे देशों से ली गई हैं। इनमें से ज्यादतर तस्वीरें भगत सिंह की इंग्लिश हैट वाली चर्चित तस्वीर है, जिसे फोटोग्राफर शाम लाल ने दिल्ली के कश्मीरी गेट पर तीन अप्रैल, 1929 को खींची थी। इस बारे में शाम लाल का बयान लाहौर षडयंत्र मामले की अदालती कार्यवाही में दर्ज है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भगत सिंह की वास्तविक तस्वीरों को बिगाड़ने की मानो होड़ सी मच गई है। मीडिया में बार-बार भगत सिंह को किसी अनजान चित्रकार की बनाई पीली पगड़ी वाली तस्वीर में दिखाया जा रहा है”।1

भारतीय मीडिया में भगत सिंह की राष्ट्रवादी के रूप में की प्रस्तुति के लिए उनसे जुड़ी तस्वीरों, विचारों व पठनीय सामग्री को विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक वर्गों द्वारा नये तरह से निर्मित किया जा रहा है। इनमें एक उदाहरण उनकी पीली पगड़ी में तस्वीर की प्रस्तुति है।

भगत सिंह के जीवन पर गहन अध्ययन करने वाले प्रोफेसर चमन लाल के अनुसार भगत सिंह की अब तक ज्ञात चार वास्तविक तस्वीरें ही उपलब्ध हैं। 1) पहली तस्वीर 11 साल की उम्र में घर पर सफ़ेद कपड़ों में खिंचाई गई थी। 2) दूसरी तस्वीर तब की है जब भगत सिंह करीब 16 साल के थे। इस तस्वीर में लाहौर के नेशनल कॉलेज के ड्रामा ग्रुप के सदस्य के रूप में भगत सिंह सफेद पगड़ी और कुर्ता-पायजामा पहने हुए दिख रहे हैं। 3) तीसरी तस्वीर 1927 की है, जब भगत सिंह की उम्र करीब 20 साल थी। तस्वीर में भगत सिंह बिना पगड़ी के खुले बालों के साथ चारपाई पर बैठे हुए हैं और सादा कपड़ों में एक पुलिस अधिकारी उनसे पूछताछ कर रहा है। 4)चौथी और आखिरी इंग्लिश हैट वाली तस्वीर दिल्ली में ली गई है तब भगत सिंह की उम्र 22 साल से थोड़ी ही कम थी।

इनके अलावा भगत सिंह के परिवार, कोर्ट, जेल या सरकारी दस्तावेजों से उनकी कोई अन्य तस्वीर नहीं मिली है। लेकिन उक्त चार तस्वीरों के अलावा भगत सिंह की एक खास तरह की काल्पनिक तस्वीर इलेक्ट्रानिक मीडिया में दिखाई गई। मीडिया में इस तस्वीर के निहितार्थ का अध्ययन भगत सिंह की प्रस्तुति के राजनीतिक सामाजिक आयामों को समझने की एक दृष्टि देता है।

1970 के दशक तक देश हो या विदेश, भगत सिंह की हैट वाली तस्वीर ही सबसे अधिक लोकप्रिय थी। सत्तर के दशक में भगत सिंह की तस्वीरों को बदलने सिलसिला शुरू हुआ। देश के राजनीतिक हालात के साथ राजनीतिक आंदोलनों के नेताओं व नायकों की छवि की प्रस्तुति का सीधा रिश्ता होता है। 1970 के दशक और उससे पहले के कुछेक वर्षों को भारतीय राजनीति में हलचल के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। नक्सलबाड़ी में आदिवासी, मजदूरों व किसानों के विद्रोह और उसके बाद आंदोलन के रूप में उसके विस्तार के साथ इंदिरा गांधी द्वारा गरीबी हटाओ के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरने जैसी घटनाओं के लिए याद किया जाता है। यह वही दौर है जब भगत सिंह जैसे शख्स की छवि को बदलने की कोशिश देखी गई। प्रो. चमन लाल के अनुसार इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार पंजाब सरकार और पंजाब के कुछ गुट हैं। 23 मार्च, 1965 को भारत के तत्कालीन गृहमंत्री वाईबी चव्हाण ने पंजाब के फिरोजपुर के पास हुसैनीवाला में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के स्मारक की बुनियाद रखी। ब्रिटेन में रहने वाले पंजाबी कवि अमरजीत चंदन ने वो तस्वीर शाया की है, जिसमें 1973 में खटकड़ कलाँ में पंजाब के उस समय के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के राष्ट्रपति बने ज्ञानी जैल सिंह भगत सिंह की हैट वाली प्रतिमा पर माला डाल रहे हैं। भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह भी उस तस्वीर में हैं।

भारत के केंद्रीय मंत्री रहे एमएस गिल बड़े ही गर्व के साथ कहते सुने गए हैं कि उन्होंने ही प्रतिमा में पगड़ी और कड़ा जोड़ा था। यह समाजवादी क्रांतिकारी नास्तिक भगत सिंह को ‘सिख नायक’ के रूप में पेश करने की कोशिश थी।2 यह किसी भी धर्म के प्रति आस्था नहीं रखने वाले भगत सिंह की छवि के साथ धर्म को जोड़कर प्रस्तुत करने की कोशिश कही जा सकती है। यदि शहीद भगत सिंह की प्रस्तुति के लिए उनकी विचारधारा के मुख्य अंगों (1) राष्ट्रवाद (2) धर्म निरपेक्षता (3) समाजवाद को अलग-अलग करने के विभिन्न राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक वर्गों के निश्चित उद्देश्य होते हैं। इनमें महज राष्ट्रवाद की छवि की प्रस्तुति के भी अलग-अलग आयाम देखने को मिलते हैं।

तकनीकी विकास और उसके राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल की प्रवृति ने तस्वीरों के साथ जुड़े इस विश्वास को धुंधला कर दिया है कि तस्वीरें वास्तविकता की छवि होती हैं। तस्वीरों को अपने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हितों के अनुरूप ढाला जा सकता है या निर्मित की जा सकती है। भगत सिंह ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी विश्व व्यापी आंदोलन के सबसे जुझारू नेताओं में एक हैं। उनकी छवि को विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक वर्गों द्वारा अपने अपने तरीके से इस्तेमाल करने की एक कड़ी के रूप में ही उन्हें बहादुर और राष्ट्र भक्त बताने के लिए उन्हें पीली पगड़ी में दिखाना ज्यादा आसान समझा गया। एक विशेष तरह के राष्ट्रवाद के साथ बहादुर बताने के अलग अर्थ होते हैं। भगत सिंह संपूर्णता में बहादुर थे और वह बहादुरी समाजवाद, धर्म निरपेक्षता और उस दौर की राष्ट्रीय भावना के साथ जुड़ी दिखती है।

अध्येता अजमेर सिंह के अनुसार 1947 से पहले राष्ट्रवाद देश की राजनैतिक आजादी का एक हथियार था, परन्तु आज इसने भारतीय राज्य की सरकारी विचारधारा का रुतबा ग्रहण कर लिया है। वे भगत सिंह की प्रस्तुति पर इस तरह से रोशनी डालते हैं कि आज के राजनैतिक हालात को नग्न आंखों से देखा जाये तो इस तथ्य को पहचानना जरा भी कठिन नहीं कि भारत के अधिकारियों द्वारा सचेत स्तर पर शहीद भगत सिंह को राष्ट्रवाद के प्रतीक के तौर पर उभारा जा रहा और इसके झूठे मनोरथों का नि:संकोच उपयोग किया जा रहा है। पिछले कुछ सालों में शहीद भगत सिंह सम्बंधी दर्जनों की संख्या में पुस्तकें लिखवायी और छपवायी गई है। संसद में उनका बुत लगवाया गया, कितनी ही फिल्में उन पर बनीं। उनके जन्म और शहीदी दिवसों पर सरकारी स्तर पर प्रभावशाली समारोह मनाये गए। उनके चित्रों वाले कैलेंण्डर और स्टिकर व्यापक पैमाने पर छापे और वितरित किए गये। यह सब कुछ अपने आप नहीं हुआ, न ही उनके प्रति निश्छल मोह में ऐसा हुआ है। यह अमल चेतन स्तर पर, अपने खोटे मंतव्य को प्रमुख रखकर हो रहा है। देश के लोगों, विशेषकर अल्पसंख्यक धार्मिक भाईचारे, लघु कौमों और दलित तथा कबायली लोगों की ओर से अपने हितों की रक्षा करने के लिए भारतीय हुकमरानों के इन खोटे मंतव्यों और इरादों की पहचान बहुत जरूरी हो गई है।3

अजमेर सिंह के अनसार शहीद भगत सिंह का राष्ट्रवादी बिम्ब विशेष तौर पर उभारा जा रहा है। वहां उनके बागी बिम्ब को धुन्धला करने के सजग प्रयत्न किये जा रहे हैं।

यह लेख जन मीडिया के मई अंक में प्रकाशित हुआ है।

 

संदर्भ

1.https://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/03/150328_bhagat_singh_image_distortion_rns?SThisFB&fb_ref=Default

  1. https://bhagatsinghstudy.blogspot.in/2015/03/who-distorted-bhagat-singhs-real.html

चमन लाल जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर हैं। उन्होंने भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेजों का संपादन किया है.

  1. एस. अजमेर सिंह का पर्चा: आज के संदर्भ में भगत सिंह और उनकी विचारधारा की प्रासंगिकता। एस अजमेर सिंह लेखक व सिख बौद्धिक समूह का अग्रणी नाम है।
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