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सत्ता ने द मिल्ली गजट को बंद कराया

दिल्ली पुलिस ने 17 साल पुराने पाक्षिक अखबार की बाँह मरोड़ी, उसे धमकाया और बंद करने के लिए मजबूर किया?

गौरव सरकार

जफरुल इस्लाम खान रद्दी फाइलों के ढेर और दस्तावेजों के ढेर से घिरे अपने कार्यालय की चरमराती कुर्सी पर बैठे हैं। जमिया नगर में उनके घर के ग्राउंड फ्लोर पर एक पुराना स्कूल है। उनके दफ्तर की दीवारों पर मिल्ली गजट को मिली ट्राफियां लटकी हुई हैं। मिल्ली गजट– एक ऐसा पाक्षिक अखबार, जो भारत के 200 मिलियन की आबादी वाले मुस्लिम समुदाय के बारे में और उसके लिए असरदार खबरों के लिए जाना जाता था और जिसके संपादक खान थे।

उनकी कुर्सी के पीछे दीवार पर हरे रंग का एक बोर्ड टंगा है। इस बोर्ड पर लगाई गई अखबार की कई कतरनों में से एक मिल्ली गजट का वो अंक भी है जिसके के पहले पन्ने पर एक गर्वीला शीर्षक अंकित है –‘हम मुसलमानों को नौकरी नहीं देतेः आयुष मंत्रालय’।  

यह रिपोर्ट मार्च 2016 में प्रकाशित की गई जो बताती है कि आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी), यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) मंत्रालय में सिर्फ कुछ जातियों के उम्मीदवारों को ही काम पर रखा जाता था। उस समय इस खबर को मुख्यधारा के मीडिया चैनलों और अखबारों ने भी जगह दी। यही वो ख़बर थी जिसकी वजह से पिछले तीन सालों में दिल्ली पुलिस और श्री खान व  उनके प्रकाशन के बीच एक लंबी लड़ाई चली। यह एक ऐसी लड़ाई थी जिसमें कथित रूप से फर्जी शिकायती पत्र, डराने की रणनीति, एक संवाददाता की ग़ैरमुनासिब गिरफ्तारी और सबूतों को पेश करने में उच्च अधिकारियों द्वारा जानबूझकर की गयी देरी आदि सब शामिल था। इन सबका आखिरी नतीजा द मिल्ली गजट के 2016 के अंत में हमेशा के लिए बंद होने के रूप में सामने आया। यह उनकी कहानी है।

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बोर्ड पर लगी हुई ख़बर की ओर इशारा करते हुए श्री खान बताते हैं कि “एक नीति के तहत आयुष मंत्रालय द्वारा मुसलमानों को नौकरी पर नहीं रखने की ख़बर को हमारे पास पुष्प शर्मा नामक रिपोर्टर लेकर आया था”। “उसने मुझे आरटीआई जवाब की प्रति दिखाई जिसमें कहा गया था कि मंत्रालय एक नीति के तहत किसी भी मुसलमान को नौकरी पर नहीं रखता है”।

खान ने खुद से भी परिश्रम किया। उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन किया और वही जवाब पाया जो उस संवाददाता को मिला था। यह ख़बर द मिल्ली गजट में 16 मार्च 2016 को प्रकाशित हुई। यहां गौर करने लायक बात यह है कि इस ख़बर के सामने आने के बाद पुष्प शर्मा द्वारा सूचना के अधिकार के तहत दाखिल आवेदन पर विवाद पैदा हो गया था और इसकी सत्यता की जांच चल रही थी।

सरकार की अखबार के खिलाफ कार्रवाई

सरकार के मंत्रालयों के आंतरिक कामकाज पर प्रकाशित सत्ता विरोधी खबरों को हतोत्साहित करने की कोशिश अप्रत्याशित या अभूतपूर्व नहीं है। इस खबर के प्रकाशित होने के 24 घंटों के अंदर, आयुष मंत्रालय ने न तो कोई बयान जारी किया और न ही अपनी जवाबी प्रतिक्रिया भेजी, जैसा कि अखबार ने उन्हें करने के लिए कहा था। इसके बजाय मंत्रालय ने कोटला मुबारकपुर पुलिस थाने को एक पत्र भेजकर मिल्ली गजट और उसके पत्रकार के खिलाफ एक मामला दर्ज करने को कहा।

खान कहते हैं कि ‘एक बार पुलिस थाने ने पत्रकार पुष्प शर्मा को पकड़ने के लिए लगभग एक दर्जन पुलिसकर्मियों को भेजा। वे उसे कोटला मुबारकपुर पुलिस स्टेशन ले गये, जहां उन्हें अगले तीन से चार दिनों तक हिरासत में रखा गया। हर समय वे उनसे पूछताछ कर रहे थे और आधिकारिक तौर पर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया था। इस बीच, हमने भी कानून का सहारा लिया और जो अन्याय हो रहा था, उसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू की।”

पुष्प को छोड़ दिया गया। बाद में लाजपत नगर के उनके घर से उन्हें आधिकारिक रूप से गिरफ्तार किया गया। उन्होंने (पुलिस अधिकारियों) उनके घर पर छापा मारा और उनका लैपटॉप, सीडी आदि ले गए और आरोप लगाया कि उन्होंने एक मनगढंत रिपोर्ट प्रकाशित की थी। पुष्प को गिरफ्तार कर लिया गया और दो हफ्ते के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया गया तथा उनके लैपटॉप को फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया। दो हफ्ते के बाद हम उनकी जमानत कराने में सफल हो गये।

आज की तारीख में पुष्प का ठिकाना अज्ञात है। यह अलग बात है कि उनके खिलाफ साकेत न्यायालय में मामला चल रहा है। खान कहते हैं कि “फोरेंसिक लैब ने बताया था कि पुष्प के लैपटॉप में किसी तरह की छेड़छेड़ के सबूत नहीं थे और उन्होंने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी”।

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अखबार को लाइसेंसिग इकाई का नोटिस

30 मई 2016 को द मिल्ली गजट को संयुक्त पुलिस आयुक्त (लाइसेंसिग इकाई) के कार्यालय द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इसमें कहा गया कि मिल्ली गजट के मालिक/प्रकाशक/संपादक के खिलाफ “श्री पुष्प शर्मा” द्वारा “गलत सूचना प्रकाशित करने के बारे में शिकायत की गई है कि सरकार ने समाज के एक समुदाय विशेष के सदस्यों को नौकरी पर रखने से जानबूझकर इनकार किया है”। इस नोटिस में कहा गया कि मिल्ली गजट ने प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 की धारा 8 बी (i) का उल्लंघन किया है और इस अखबार “मिल्ली गजट अखबार की घोषणा के प्रमाणीकरण को रद्द क्यों न किया जाए?”

नोटिस में खान और उनके प्रकाशन को अगले 15 दिनों में जवाब देने का निर्देश दिया गया और यह ताकीद की कि जवाब देने में असफल रहने पर यह समझा जाएगा कि “आपको इस मामले में कुछ नहीं कहना है और इस मामले का निपटारा गुण – दोष के आधार पर किया जाएगा”।

खान को जब यह नोटिस मिला, तो वह चकरा गये। उन्होंने कहा, “यह कहना मनगढंत है कि पुष्प शर्मा ने मिल्ली गजट के खिलाफ शिकायत की है। हमें उनसे शपथ पत्र मिला कि उन्होंने कभी इस तरह की शिकायत दर्ज नहीं की। मैंने 7 जून 2016 को पुलिस को वापस जवाब भेज दिया और शिकायत की प्रति मांगी ताकि मैं औपचारिक रूप से इसका जवाब दे सकूं- लेकिन कोई प्रति नहीं दी गई”।

आरटीआई के जरिए भी दस्तावेज मुहैया नहीं करवाये गये

खान ने इस बारे में विस्तृत जानकारी पाने के लिए सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन दिया। उन्होंने बताया, “आरटीआई के जवाब में मुझे कहा गया कि मैं तीसरा पक्ष हूं और इसलिए मुझे यह जानकारी नहीं दी जा सकती। मैंने वापस लिखा और कहा कि मैं इस मामले में या तो पहला पक्ष या दूसरा पक्ष हूं, फिर भी शिकायत की प्रति और विवरण मुझे मुहैया नहीं करवाया गया। फिर उसी कार्यालय में मैंने उच्च आधिकारी को एक अपील भेजी, लेकिन इसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।

पुलिस अधिकारियों ने अपना समय लिया और खान का जवाब मिलने के बाद उन्हें वापस लिखा। उन्होंने उनको दस्तावेज और एफआईआर की एक प्रति भेजी, लेकिन शिकायत की प्रति नहीं भेजी। श्री खान कहते हैं कि “उन्होंने मुझे काफी कागज भेज दिये लेकिन शिकायत की प्रति नहीं भेजी। मुझे लगता है कि ऐसी कोई शिकायत मौजूद ही नहीं है”।

12 अक्टूबर 2016 को श्री खान ने फिर से उन्हें लिखा। “आपने मुझे पुलिस स्टेशन कोटला मुबारकपुर में दर्ज एफआईआर न. 0225/16 दिनांक 13 मार्च 2016 की एक प्रति भेजी है। लेकिन यह पूरी तरह से बेमतलब है तथा आपके और मेरे समय की बर्बादी है..30 मई 2016 को आपके द्वारा भेजे गये कारण बताओ नोटिस में, आपने हमारे अखबार के खिलाफ शिकायत करने वाले एक सज्जन का उल्लेख किया है। इस विशेष संदर्भ में मेरा यह कहना है कि मैंने अपने पिछले पत्र में आपसे निम्नलिखित विवरण प्रस्तुत करने के लिए अनुरोध किया था ताकि मैं आपको कारण बताओ नोटिस का जवाब दे सकूं: 1) उस शिकायत की एक प्रति जिसके आधार पर आपने उक्त कार्रवाई की और 2) उन वजहों की प्रति जो आपकी नजरों में प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 के नियम 8 (बी) के तहत हमें नोटिस जारी करने का आधार बनी।

पत्र के अंत में “कृप्या हमें अपने अखबार पर लगाए गए आरोपों के बारे में एक विस्तृत और बिन्दुवार स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिए उपरोक्त दो दस्तावेजों की प्रतियां प्रदान करें”।

इस मामले पर प्रेस परिषद का रवैया

इस बीच, खान को भारतीय प्रेस परिषद द्वारा भी बुलाया गया था। वे कहते हैं कि “हमें स्टोरी के विवरण और उसकी पृष्ठभूमि (बैकग्राउंड) के बारे बताने के लिए एक नोटिस मिला”। “एक बार फिर हमने एक वकील की मदद ली और उन्हें जवाब दिया। उसके बाद उन्होंने 2016-17 के बीच लगभग तीन से चार सुनवाई के लिए हमें बुलाया और मामले को सिरे से खारिज कर दिया”।

खान के अनुसार, यहां भी उन्हें थोड़ा प्रताड़ित किया गया। “तीसरी सुनवाई में प्रेस परिषद के प्रमुख ने कहा कि वे हमारी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन असल में क्या चल रहा था कि प्रेस परिषद के कुछ सदस्य -जो सुनवाई के दौरान आक्रामक थे- कह रहे थे कि केवल रिपोर्टर के खिलाफ ही कार्रवाई क्यों होनी चाहिए, संपादक के खिलाफ क्यों नहीं? मुझे नहीं पता कि इससे प्रेस परिषद के अध्यक्ष कितना प्रभावित हुए, लेकिन अंत में उस मामले को खारिज कर दिया गया”।

इसी बीच, मिल्ली गजट ने 2016 में अपने प्रिंट संस्करण का प्रकाशन रोक दिया, सिर्फ इसके डिजिटल संस्करण को जारी रखा। खान कहते हैं कि इसके पीछे निश्चित रूप से इस “उपद्रव” और आर्थिक परेशानियों का एक अहम योगदान था।

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केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश के बाद दस्तावेज नहीं दिये गये

खान ने तब इस मामले को लेकर केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) से संपर्क किया। “उन्होंने अपना समय लिया। लगभग एक साल बाद हमें सुनवाई के लिए एक नोटिस मिला। पहली सुनवाई 4 जुलाई 2018 को जेएनयू के निकट केन्द्रीय सूचना आयोग के कार्यालय में हुई जिसमें दिल्ली पुलिस और उनके वकील मौजूद थे।

उनके अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त का रवैया पुलिस के प्रति “बहुत कठोर” था और उन्होंने शिकायत की एक प्रति खान को देने का आदेश दिया। आयुक्त ने आगे कहा कि पुलिस अधिकारी इस सूचना को इतने लंबे समय तक दबाकर नहीं बैठ सकते – क्योंकि कारण बताओ नोटिस अभी भी लंबित है।

इसके बावजूद खान को “पुष्प शर्मा” द्वारा कथित रूप से दर्ज करवायी गई प्राथमिक शिकायत के बारे में कोई भी दस्तावेज नहीं भेजा गया। उन्होंने बताया, “मैंने एक बार फिर मुख्य सूचना आयुक्त को लिखा कि कैसे निर्धारित समय सीमा और कार्रवाई के संदर्भ में पुलिस ने उनके निर्देश का पालन नहीं किया और मुझे वे कागजात नहीं दिये गये जिसकी मुझे जरूरत थी”।

इसके बाद, खान को अधिकारियों द्वारा एक फोन आया और उन्हें पेश होने के लिए कहा गया। उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह अपराधी नहीं हैं। उन्होंने बताया, “फिर उन्होंने मुझे 9 अक्टूबर 2018 को एक औपचारिक नोटिस भेजा जिसमें मिल्ली गजट को मई 2016 में जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को रद्द करने के संदर्भ में 12 अक्टूबर 2018 को आने और मिलने के लिए कहा गया। लेकिन मुझे यह पत्र 23 अक्टूबर 2018 को मिला।”

लाइसेंसिंग इकाई द्वारा संपादक को परेशान किया गया

खान ने समन मिलने के अगले दिन अधिकारियों को वापस लिखाः “मुझे 23 अक्टूबर 2018 को आपका दिनांक 9 अक्टूबर 2018 का लिखा उपर्युक्त पत्र प्राप्त हुआ। इस पत्र में, आपने मुझे 12 अक्टूबर 2018 को शाम 4 बजे 30 मई 2016 को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के संबंध में अपने कार्यालय में मिलने के लिए कहा है। इसका मतलब है कि आपका पत्र मुझे आपके कार्यालय में उपस्थित होने के लिए निर्धारित तारीख से पूरे 11 दिन बाद मिला”।

खान ने यह पता लगाने के लिए थोड़ी सी खोजबीन भी की कि पुलिस ने वास्तव में समन पत्र कब पोस्ट किया था। उन्होंने लिखाः “चूंकि आपका पत्र स्पीड पोस्ट के जरिए भेजा गया था.. मैंने इस पत्र के ट्रैकिंग रिकॉर्ड तक पहुंचने के लिए indiapost.gov.in पर लॉग इन किया। मुझे आश्चर्य हुआ, ट्रैकिंग रिकॉर्ड से पता चला कि उक्त पत्र 17 अक्टूबर 2018 को लाजपत नगर साउथ दिल्ली एसओ से 14:31 बजे बुक किया गया था और 18 अक्टूबर 2018 को न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी एसओ में पहुंचा। इस मतलब यह है कि उक्त पत्र को आपके कार्यालय द्वारा उल्लिखित भेजने की तारीख के आठ दिन बाद पोस्ट किया गया और मुझे जिस दिन आपके कार्यालय में हाजिर होना था उस तारीख के पूरे पांच दिन बाद भेजा गया”।

एक बार फिर, अधिकारियों ने खान को वापस लिखा और उन्हें 7 जनवरी 2019 को अपने कार्यालय में आने के लिए कहा। “श्री प्रभाकर जोकि संयुक्त पुलिस आयुक्त (लाइसेंसिंग इकाई) हैं, से मिलने के लिए मुझे एक घंटे उनके प्रतीक्षालय में बैठकर इंतजार करना पड़ा। एक घंटे के बाद, मैं उनके कार्यालय के बाहर बैठे क्लर्क के पास गया और उनसे कहा कि मैं अब और इंतजार नहीं कर सकता। उसी समय श्री प्रभाकर अपने कार्यालय से बाहर आये और उन्होंने पूछा कि क्या चल रहा है। मैंने उनसे कहा कि मुझे यहां आने और मिलने के लिए कहा गया था और मैं पिछले एक घंटे से इंतजार कर रहा हूं”।

प्रभाकर श्री खान को अपने कार्यालय में लेकर गये और उनसे इस मामले के बारे में पूछा। खान ने बताया कि एक खबर को प्रकाशित करने के बाद से, उन्होंने एक आरटीआई के जरिए जानकारी जुटाई थीं जिसने यह साबित किया कि मिल्ली गजट ने अपनी खबर में कुछ गलत नहीं छापा था। “उन्होंने पूछा कि जब ऐसा कुछ प्रकाशित होता है तो क्या होता है, तो मैंने कहा कि जो व्यक्ति या संस्था यह सोचती है कि उसके बारे में कुछ गलत प्रकाशित हुआ है, वह हमें पत्र लिखता है और हम उसे प्रकाशित करते हैं। यदि हम प्रकाशित करते हैं, तो मामला वहीं खत्म हो जाता है और यदि हम अस्वीकार कर देते है तो संबंधित पक्ष दूसरे उपायों को तलाश कर सकता है। मैंने उनसे कहा कि मैंने आयुष मंत्रालय से उनका पक्ष रखने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इसके बजाय उसने पुलिस को कार्रवाई करने के लिए कहा”। खान का कहना है कि इसके तुरंत बाद बैठक खत्म हो गई।

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आखिकार संयुक्त पुलिस आयुक्त ने दिनांक 25 जनवरी 2019 को जारी एक आदेश के माध्यम से हमारे अखबार जारी किया गया तीन साल पुराना अपना नोटिस वापस ले लिया। और ऐसा इस पाक्षिका अखबार द्वारा अपना प्रिंट संस्करण बंद कर देने और बुनियादी रूप से ऑनलाइन संस्करण की ओर मुड़ जाने के काफी समय बाद हुआ।

प्रिंट संस्करण के बंद होने के बाद नोटिस रद्द कर दिया

उक्त आदेश में कहा गयाः “चूंकि, अधोहस्ताक्षरी के समक्ष आपके द्वारा संतोषजनक ढंग से बताया गया है कि आप असंतुष्ट पक्ष के प्रत्युत्तर को प्रकाशित करने के लिए तैयार हैं यद्पि रिकॉर्ड के मुताबिक असंतुष्ट पक्ष ने प्रत्युत्तर या स्पष्टीकरण छापने का कोई अनुरोध नहीं किया था। यह निष्कर्ष निकाला गयाः इसलिए, मैं प्रभाकर संयुक्त पुलिस आयुक्त, लाइसेंसिंग इकाई, नई दिल्ली उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को रद्द करता हूं”।    

हालांकि, पुष्प शर्मा के खिलाफ मामला अभी भी लंबित है। “पुष्प शर्मा” द्वारा दर्ज किया गया शिकायती पत्र अभी तक खान नहीं देख पाये हैं। खान कहते हैं कि “अभिव्यक्ति की आजादी को दबाना सही नहीं है”। “यदि वे (आयुष मंत्रालय) न्यायंसगत होता, तो वह मुझे प्रत्युत्तर भेज सकते थे और मैं हमेशा यह प्रकाशित करने के लिए तैयार था। मैंने उन्हें (मंत्रालय) विभिन्न ई-मेल के जरिये यह बताया था लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और हमसे संपर्क नहीं किया। उन्होंने केवल पुलिस के जरिये हमसे संपर्क किया”।

खान कहते हैं कि मिल्ली गजट का मुद्रण लगभग 17 साल से हो रहा था लेकिन अब यह सिर्फ ऑनलाइन प्रकाशन के रूप में मौजूद है। हमने 2016 के अंत में इसकी छपाई बंद कर दी। यह उपद्रव एक कारक था, हर दिन बढ़ता वित्तीय संकट भी एक कारण था। अखबार हमेशा आरएसएस/भाजपा की नीतियों का विरोध करने में आगे रहा और तथाकथित आतंकी अभियानों, जिसके केन्द्र में मुसलमान हैं, के बारे में स्पष्ट तरीके से लिखा। ये काल्पनिक हैं और ऐसे मामलों में 98 प्रतिशत मनगढंत होते हैं। हम यह बात सबूत के साथ कह रहे हैं न कि केवल बयानबाजी है। हमारे रवैये को उच्च शक्तियों द्वारा पसंद नहीं किया गया इसलिए उन्होंने हमें हराने के लिए इसे एक अच्छा कदम माना।

खान का कहना है कि वह अभी भी अपने प्रकाशन की स्टोरी के पक्ष में खड़े हैं। “मैंने खुद बाद में आयुष मंत्रालय में आरटीआई लगाई और उसके जवाब लगभग पुष्प शर्मा के जवाब से मिलते-जुलते थे। वे पूरी तरह से एक जैसे नहीं थे लेकिन उन्होंने लगभग उसी बात की पुष्टि की, जिसके बारे में स्टोरी में मंत्रालय में नौकरी पर रखने के बारे में बताया गया था। मंत्रालय में सिर्फ एक कर्मचारी मुसलमान था और एक अन्य मुसलमान कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर कार्यरत था। मैंने यह जानकारी नहीं छापी थी लेकिन पुष्प शर्मा की आरटीआई सही थी”।

अंत में तीन साल की लंबी लड़ाई के बाद, द मिल्ली गजट अभी भी मुस्लिम समुदाय के लिए पत्रकारिता की जिम्मेदारियों को निभा रहा है लेकिन अब इसे सीमित ऑनलाइन पर ही देखा जा सकता है। उन्होंने कहा, “मुझे खेद है कि मीडिया बिरादरी हमारे साथ नहीं खड़ी थी। यह पूरी खबर छिटपुट टुकड़ों और हिस्सों में बताई गई थी। यह एक बड़ी खबर थी और हम लंबे समय से निकलने वाला एक अखबार थे। यह अकेला अखबार था जो मुसलमानों के लिए आवाज उठाता था”।

यह पूछे जाने पर कि क्या अखबार का स्वर सरकार विरोधी था, खान कहते हैः “हम मोदी-विरोधी या किसी के भी विरोधी नहीं, लेकिन अगर कोई अन्याय हो रहा होता तो हम उसके खिलाफ आवाज उठाते थे। कांग्रेस शासन के समय हम उनकी नीतियों और हमारे समुदाय के प्रति उनके उदासीन रवैये के खिलाफ हम बोलते थे। हम सत्त विरोधी थे, हां, जिस तरह से कोई भी न्यायसंगत मीडिया संगठन सत्ता विरोधी होगा। अब अखबार बंद हो गया है और सिर्फ ऑनलाइन संस्करण ही चलता है, इसलिए पूरी खबर पहले ही बताई जानी चाहिए थी”। न्यूजलॉन्ड्री ने संयुक्त पुलिस आयुक्त (लाइसेंसिंग इकाई) से टिप्पणी के लिए प्रयास किया है। टिप्पणी मिलने पर बाद में इसे जोड़ा जाएगा।

अंग्रेजी से अनुवाद- संजय कुमार बलौदिया

 (जन मीडिया के मार्च 2019 अंक-84  में प्रकाशित मीडिया के किस्से)

इस लेख को अंग्रेजी में यहां पढ़ा जा सकता हैhttps://www.newslaundry.com/2019/02/14/the-curious-case-of-the-milli-gazette

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