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सामुदायिक रेडियो पर एनजीओ का बढ़ता प्रभुत्व

संजय कुमार बलौदिया/ रजनीश

सामुदायिक रेडियो एक विशेष प्रकार का रेडियो प्रसारण है जहां स्थानीय लोग रेडियो स्टेशन का संचालन करने के साथ ही अपने कार्यक्रमों का निर्माण और प्रसारण भी करते हैं। सामान्यतः यह स्टेशन शार्ट-रेंज और गैर-लाभकारी अवधारणा पर आधारित होते हैं, एक विशेष इलाके, एक भौगोलिक समुदाय या समुदायों के हितों के अनुरूप लोगों की सूचनात्मक आवश्यकताओं को उनकी भाषा व शैली (फॉर्मेट) में प्रदान करते हैं। यह एक ऐसा माध्यम है जो व्यक्तियों, समूहों और समुदायों को अपनी कहानी कहने, अनुभव साझा करने और कंटेट तैयार करने में भूमिका निभाने में सक्षम बनाता है। सामुदायिक रेडियो का कंटेट (विषय-वस्तु) स्थानीय लोगों के लिए खासकर श्रोताओं के लिए काफी लोकप्रिय और प्रासंगिक है। एक तरह से यह लोगों के मिलने और सहयोग करने की एक सामुदायिक जगह है। सामुदायिक रेडियो स्टेशनों द्वारा कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामुदायिक विकास, संस्कृति, लोकगीत कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है।

सामुदायिक रेडियो के 12 किलोमीटर के दायरे की सीमा तक में बंधे होने के साथ यह शर्त भी जुड़ी होती है कि उसके करीब 50 प्रतिशत कार्यक्रमों में स्थानीयता हो और जहां तक संभव हो, वे स्थानीय भाषा में हों। सामुदायिक रेडियो पर प्रायोजित प्रोग्रामों की अनुमति नहीं है लेकिन राज्य या केन्द्र सरकार से प्रायोजित कार्यक्रम प्राप्त होने पर इन्हें प्रसारित किया जा सकता है।1

देश का पहला कम्युनिटी रेडियो चेन्नै की अन्ना यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2004 में स्थापित हुआ था। तो पहला एनजीओ बेस्ड कम्युनिटी रेडियो संघम था, जिसे 2008 में तेलंगाना के मेडक जिले में डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी ने स्थापित किया था।216 नवंबर 2006 को भारत सरकार द्वारा एक नई कम्युनिटी रेडियो नीति को अधिसूचित किया गया। इसके तहत गैर-व्यावसायिक संस्थाएं, जैसे स्वयंसेवी संस्थाएं, कृषि विश्वविद्यालय, सामाजिक संस्थाएं, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थाएं, कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) तथा शैक्षणिक संस्था सामुदायिक रेडियो के लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकती हैं।3

राज्यों में सामुदायिक रेडियो का प्रसार

सामुदायिक रेडियो की एक नवाचार के रूप में भारत जैसे देश में काफी गुंजाइश है जो मुख्य रूप से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था पर आधारित है और अपने शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पुरजोर प्रयास कर रहा है। वह भी तब, जब सरकार अपने अधिकांश सामाजिक दायित्वों से पीछे हट रही है और कुछ को छोड़कर अपने सभी मसलों को निजी क्षेत्र के अग्रणी लोगों को सौंप रही है। इस बात को ध्यान में रखते हुए यह विश्लेषण करना बहुत तार्किक है कि भारत में सामुदायिक रेडियो का विकास कैसे हो रहा है?  इसकी सीमा क्या है? इसे कैसे और किसके द्वारा संचालित किया जा रहा है? यह किसके हितों को पूरा करता है? शिक्षा संबंधी उद्देश्यों के लिए इसे किस हद तक संचालित किया जा रहा है? क्या यह कृषि संबंधी उद्देश्यों के लिए अपनी पर्याप्त भूमिका निभा रहा है?    

26 जुलाई 2021 तक देशभर में संचालित सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का विवरण (तालिका-1)

क्रं. राज्य एनजीओ शैक्षणिक संस्थान कृषि विज्ञान केंद्र  संख्या
1. आंध्र प्रदेश 3 4 0 7
2. अरुणाचल प्रदेश  1 0 0 1
3. असम 1 3 0 4
4. बिहार 7 1 2 10
5. चंडीगढ़ 2 2 0 4
6. छत्तीसगढ़ 3 4 1 8
7. दिल्ली 1 5 0 6
8. गुजरात 6 3 2 11
9. हरियाणा 9 6 5 20
10. हिमाचल प्रदेश 2 2 0 4
11. जम्मू-कश्मीर  1 2 0 3
12. झारखंड 2 1 0 3
13. कर्नाटक 8 13 1 22
14. केरल 7 6 1 14
15. मध्य प्रदेश 16 9 0 25
16. महाराष्ट्र 17 10 4 31
17. मणिपुर 4 0 0 4
18. उड़ीसा 17 2 0 19
19. पुडुचेरी 1 3 0 4
20. पंजाब 1 5 0 6
21. राजस्थान 10 7 0 17
22. सिक्किम 1 0 0 1
23. तमिलनाडु 10 27 2 39
24. तेलंगाना 8 3 0 11
25. त्रिपुरा 1 0 0 1
26. उत्तरप्रदेश 19 17 2 38
27. उत्तराखंड 5 4 1 10
28. पश्चिम बंगाल 3 3 0 6
166 142 21 329

 

नोट- तालिका-1 को इस उद्देश्य से तैयार किया गया है कि पाठकों को यह समझने में मदद मिले कि एनजीओ, शैक्षणिक संस्थान और केवीके द्वारा किस राज्य में कितने सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का संचालन किया जा रहा है। यह तालिका सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर तैयार की गई, पूरे 329 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की सूची को  https://mib.gov.in/sites/default/files/List%20of%20operational%20CRS%20in%20India%20as%20on%2026.07.2021.pdf पर जाकर देखा जा सकता है।

तालिका-1 के अनुसार भारत में 26 जुलाई 2021 तक 329 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का संचालन हो रहा है। इन स्टेशनों में से 166 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को विभिन्न एनजीओ द्वारा चलाया जाता है। कुल 142 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को शैक्षणिक संस्थानों द्वारा चलाया जाता है। हालांकि, सिर्फ 21 स्टेशनों का संचालन कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) द्वारा किया जाता है। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक रेडियो के संचालन में गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) का प्रभुत्व है। इसे सरकार के सामाजिक दायित्वों से पीछे हटने के संकेत के रूप में देखा जा सकता है। 

कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) द्वारा सिर्फ 21 स्टेशनों के संचालन का मतलब यह है कि कृषि या खेती से जुड़े समुदाय सामुदायिक रेडियो संचालन में पीछे रह जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो इन समुदायों ने अभी भी अपने जीवन में सामुदायिक रेडियो के महत्व, क्षमता, भूमिका और आवश्यकता को नहीं पहचाना है। इस महत्वपूर्ण तथ्य को रेखांकित करने की भी जरूरत है कि कृषि से जुड़ा समुदाय अपने शैक्षिक पिछड़ेपन के कारण सामुदायिक रेडियो जैसे समकालीन विकास और नवाचारों के बारे में जागरूक नहीं है। 

भारत में तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक 39 सामुदायिक रेडियो स्टेशन चल रहे हैं। यह अपेक्षित भी है क्योंकि राज्य में काफी सामाजिक-आर्थिक विकास हुआ है। हालांकि, 38 स्टेशनों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है, जो कि काफी दिलचस्प है। देश का सबसे शहरीकृत राज्य महाराष्ट्र 31 स्टेशनों के साथ तीसरे स्थान पर है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि मध्य प्रदेश कई मायनों में तुलनात्मक रूप से कम विकसित राज्य है लेकिन यहां भी कुल 25 सामुदायिक रेडियो स्टेशन हैं। 

सिक्किम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों में प्रत्येक में एक-एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन ही चलाया जा रहा है। यह भी दिलचस्प है कि इन तीनों राज्यों में ये स्टेशन एनजीओ द्वारा चलाये जाते हैं! इन राज्यों में शैक्षणिक संस्थान और कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किसी स्टेशन का संचालन नहीं किया जाता है।  

तमिलनाडु में 39 स्टेशनों में से कुल 27 शैक्षणिक संस्थानों द्वारा चलाये जाते हैं जबकि 10 स्टेशनों का एनजीओ और बाकी दो स्टेशनों का संचालन केवीके द्वारा किया जाता है। इसके बरक्स, उत्तर प्रदेश में शैक्षणिक संस्थानों द्वारा 17 स्टेशनों का संचालन किया जाता है। देश के सबसे अधिक आबादी वाले इस राज्य में 19 स्टेशनों का संचालन गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा किया जाता है। तमिलनाडु की तरह ही उत्तर प्रदेश में भी दो स्टेशनों का संचालन केवीके करता है।     

जहां तक उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र का सवाल है, दोनों ही राज्यों में गैर सरकारी संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों द्वारा संचालित सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की संख्या के संदर्भ में एक किस्म का संतुलन सा दिखता है। जहां उत्तर प्रदेश में एनजीओ द्वारा 19 स्टेशन और 17 स्टेशन शैक्षणिक संस्थानों द्वारा चलाये जाते हैं वहीं एनजीओ द्वारा महाराष्ट्र में 17 स्टेशन और 10 स्टेशन शैक्षणिक संस्थानों द्वारा चलाये जाते हैं। यहां गौर करने वाली बात है कि उत्तर प्रदेश को एक अविकसित राज्य माना जाता है, जबकि महाराष्ट्र को देश के विकसित राज्य के रूप में देखा जाता है।  

गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के संदर्भ में, उत्तर प्रदेश में 19 स्टेशन हैं। दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र और ओडिशा दोनों ही राज्यों में प्रत्येक में ऐसे स्टेशनों की संख्या 17 हैं। यहां ध्यान देने वाली बात है कि ओडिशा को एक अविकसित राज्य माना जाता है और महाराष्ट्र को विकास के सभी मानकों पर बहुत आगे माना जाता है। इसके बरक्स, मध्य प्रदेश में 16 ऐसे स्टेशन हैं जबकि राजस्थान और तमिलनाडु दोनों में ऐसे स्टेशनों की संख्या 10-10 हैं। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश, ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे अविकसित राज्यों में एनजीओ द्वारा संचालित सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की संख्या अच्छी-खासी है! यह स्पष्ट रूप से इन राज्यों में गैर सरकारी संगठनों पर लोगों की निर्भरता को भी बताता है।

हम सभी जानते हैं कि केरल देश में अपनी उच्च साक्षरता दर के लिए जाना जाता है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, शैक्षणिक संस्थानों द्वारा संचालित स्टेशनों के मामले में यह राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों से भी पीछे है। इस राज्य में शैक्षणिक संस्थानों द्वारा सिर्फ छह सामुदायिक रेडियो स्टेशन ही चलाये जाते हैं। केरल में कुल 14 स्टेशनों का संचालन होता है जिनमें से सात गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जाते हैं और शेष एक स्टेशन कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा चलाया जाता है। शैक्षणिक संस्थानों द्वारा संचालन के मामले में 27 स्टेशनों के साथ तमिलनाडु अग्रणी राज्य है। यह गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश जैसा राज्य, जिसकी पर्याप्त शिक्षा संबंधी बुनियादी ढांचे और उपयुक्त शैक्षिक वातावरण की कमी के लिए अक्सर आलोचना की जाती है, शैक्षणिक संस्थानों द्वारा सामुदायिक रेडियो के संचालन के मामले में दूसरे स्थान पर है। बिहार और झारखंड दोनों राज्यों में एक-एक ऐसे स्टेशन हैं। चार राज्यों सिक्किम, त्रिपुरा, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में शैक्षणिक संस्थानों द्वारा कोई रेडियो स्टेशन संचालित नहीं होता है।

कुल 11 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के साथ गुजरात, जो अपने विकास मॉडल के लिए प्रसिद्ध है, बिहार से थोड़ा ही आगे है जहां कुल 10 स्टेशन है। हरियाणा भी कुल 20 स्टेशनों के साथ गुजरात राज्य से काफी आगे है। तालिका-1 में उल्लिखित तीनों प्रकार के सामुदायिक रेडियो स्टेशन के मामले में हरियाणा, गुजरात से आगे है।

जहां तक कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के सामुदायिक रेडियो का राज्यों से संबंध है, तालिका-1 के मुताबिक सूचीबद्ध 28 राज्यों में से 18 राज्यों में केवीके का कोई रोडियो स्टेशन नहीं है। हरियाणा राज्य, जहां खाप पंचायतों का जीवन के सभी क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण प्रभाव है, में केवीके के सबसे अधिक सामुदायिक रेडियो स्टेशन हैं। इस राज्य में केवीके के पांच सामुदायिक रेडियो स्टेशन हैं। इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान आता है, जहां चार ऐसे सामुदायिक रेडियो स्टेशन हैं। चार राज्यों बिहार, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में केवीके के दो-दो स्टेशन हैं। वहीं छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल और उत्तराखंड में एक-एक ऐसा स्टेशन है।

एनजीओ और सामुदायिक रेडियो

अगस्त 2015 की एक खबर के मुताबिक, सीबीआई द्वारा की गई जांच में पता चला कि भारत में कम से कम 31 लाख एनजीओ पंजीकृत है। देश में हर 400 लोगों पर एक एनजीओ काम कर रहा है। यह आंकड़ा सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत एनजीओ का है और इस आंकड़े में ओडिशा, कर्नाटक और तेलंगाना राज्य के पंजीकृत एनजीओ शामिल नहीं हैं। अब अगर राज्यों के संदर्भ में बात की जाए तो इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 5.48 लाख, महाराष्ट्र में 5.18, केरल में 3.7 लाख और पश्चिम बंगाल में 2.34 लाख एनजीओ है।4     

जिस तरह से उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक एनजीओ है उसी के बरक्स इसी राज्य में सबसे अधिक सामुदायिक रेडियो का संचालन किया जाता है। यहां एनजीओ द्वारा 19 सामुदायिक रेडियो स्टेशन चलाए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बाद एनजीओ की संख्या के मामले महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है। उसी तरह एनजीओ द्वारा सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का संचालन किए जाने के मामले में भी महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है। महाराष्ट्र में एनजीओ द्वारा 17 स्टेशन चलाये जाते हैं।

राज्यों में एनजीओ की संख्या और सामुदायिक रेडियो की संख्या के बीच एक संबंध दिखता है। यह संबंध कहीं न एनजीओ की आर्थिक स्थिति और उसके प्रभाव के रूप नजर आता है। कहा जा सकता है कि सामुदायिक रेडियो को स्वयंसेवी संस्थाएं, कृषि विश्वविद्यालय, सामाजिक संस्थाएं, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थाएं, कृषि विज्ञान केंद्र तथा शैक्षणिक संस्था द्वारा स्थापित किया जा सकता है। लेकिन एक सामुदायिक रेडियो को स्थापित करने का खर्च 15 लाख से अधिक होता है। इन रेडियो स्टेशनों के राजस्व का भी कोई ठोस ढांचा नहीं है। किसी भी देश या व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कई चीजों को तय करने में अहम भूमिका निभाती है। एनजीओ और सामुदायिक रेडियो के बीच संबंध को समझने के लिए एक विस्तृत अध्ययन किए जाने की जरूरत है।   

अब एक और पहलू पर नजर डालते हैं। तालिका-2 के आंकड़ों से पता चलता है कि 2017-18 के दौरान तक देश में कुल 214 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों में से 113 शैक्षणिक संस्थान द्वारा संचालित होते थे। इसके बाद अगर हम मई 2020 के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि कुल 290 में से 143 स्टेशन एनजीओ द्वारा संचालित हो रहे हैं। जुलाई 2021 के आंकड़ों में भी एनजीओ द्वारा 166 स्टेशन संचालित किए जा रहे हैं। इससे पता चलता है 2018 के दौरान से 2020 के दौरान एनजीओ द्वारा स्टेशनों को संचालित करने में काफी वृद्धि हुई और इस तेजी से हुई वृद्धि ने शैक्षणिक संस्थानों को पीछे छोड़ दिया है। शैक्षणिक संस्थानों का सामुदायिक रेडियो की ओर रुझान घटता हुआ दिख रहा है। इनकी संख्या एनजीओ के बरक्स काफी धीमी गति से बढ़ रही है। यह भी एक अध्ययन का विषय है कि 2018 से 2020 के दौरान एनजीओ द्वारा सामुदायिक रेडियो संचालन में जिस तरह की तेजी आई है, उसके क्या कारण है।

तालिका-2

2017-18 की सूचना प्रसारण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर*
कुल सीएसओ/एनजीओ शैक्षणिक संस्थान एसएयू/ केवीके
214 86 113 15
पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) की वेबसाइट की 22 मई 2020 की प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर**
कुल एनजीओ शैक्षणिक संस्थान केवीके
290 143 130 17
सूचना प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट के आधार पर***
कुल  एनजीओ शैक्षणिक संस्थान केवीके
329 166 142 21

*https://mib.gov.in/sites/default/files/Annual_Report_2017-18%20%28Hindi%29.pdf

**https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1626183

***https://mib.gov.in/sites/default/files/List%20of%20operational%20CRS%20in%20India%20as%20on%2026.07.2021.pdf

पिछले तीन वर्षों के दौरान एनजीओ द्वारा संचालित सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की संख्या बढ़ने के एक कारण को राज्यसभा में पूछे गए सवाल के जरिये समझा जा सकता है। राज्यसभा में एम.पी. वीरेन्द्र कुमार ने सूचना और प्रसारण मंत्री से एक सवाल (अतारांकित प्रश्न संख्या 3266) पूछा। 

  • सवाल- क्या सरकार ने स्वैच्छिक संगठनों और व्यक्तियों द्वारा स्थापित किए गए सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को बढ़ावा दिया है और उनकी सहायता की है?

इस सवाल का जवाब 23 मार्च 2020 को सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने दिया। भारत सरकार ने देश में स्वैच्छिक संगठनों द्वारा स्थापित सामुदायिक रेडियो (सीआर) स्टेशनों को संवर्धन करने और उन्हें सहायता करने के लिए “भारत में सामुदायिक रेडियो आंदोलन को सहायता” नामक स्कीम कार्यान्वित की है।5 

सामुदायिक रेडिया के वित्तीय पहलू

इस जवाब से पता चलता है कि सरकार स्वैच्छिक संगठनों/एनजीओ को एक योजना के माध्यम से सहायता प्रदान कर रही है। इस योजना के तहत दी गई सहायता के बारे में सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा 31 जुलाई 2019 को जारी की गई सूची को देखा जा सकता है।6 इस सूची के मिलने के बाद यह जानने की कोशिश की गई। वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले रेडियो स्टेशन का संचालन कौन करता है। 

इसके बारे में जानने के लिए एक पद्धति अपनायी गई। इस पद्धति में जिन 24 सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी। उनको 26 जुलाई 2021 तक संचालित 329 सामुदायिक रेडियो स्टेशन की सूची में ढूंढा गया और यह देखा गया कि इनका संचालन एनजीओ, शैक्षणिक संस्थान और केवीके कौन करता है। इन दोनों सूचियों का विश्लेषण करने पर पता चला कि जिन 24 रेडियो स्टेशनों को वित्तीय सहायता दी गई है। उनमें से 19 रेडियो स्टेशनों का संचालन एनजीओ करते हैं जबकि सिर्फ 4 रेडियो स्टेशनों का संचालन शैक्षणिक संस्थान करते हैं। एक रेडियो के स्टेशन के बारे में जानकारी नहीं मिल पायी।  

राज्यसभा में पूछे गए सवाल और सूचियों के विश्लेषण से एनजीओ द्वारा संचालित रेडियो स्टेशनों की संख्या के बढ़ने का एक कारण पता चलता है। रेडियो स्टेशनों का संख्या बढ़ने के अन्य कारणों की भी पड़ताल की जानी चाहिए जिसमें रेडियो स्टेशनों के लिए किए गए आवेदनों की संख्या को भी देखा जा सकता है। आवेदनों को स्वीकृति दिए जाने और खारिज किए जाने के औसत पर ध्यान दिया जा सकता है।

  • 21 मई 2018 तक सामुदायिक रेडियों को स्थापित करने के आवेदनों का रद्द किए जाने का ब्यौरा

कुल आवेदन जो रद्द किए गए- 1148

  1. गैर सरकारी संगठन- 820
  2. शैक्षणिक संस्थान- 273
  3. कृषि विज्ञान केन्द्र- 54

4- राज्य कृषि- 1

(नोटः सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने के लिए जिन आवेदन पत्रों को रद्द किया गया है, उसकी सूची सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर अंग्रेजी में उपलब्ध है। इस सूची के विश्लेषण के आधार पर रद्द किए जाने वाले आवेदन पत्रों की उपरोक्त संख्या निकाली गई है। यह प्रयास किया गया है कि इस संख्या में त्रुटि न हो।) 

पीआईबी की एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने इंगित किया कि वर्तमान में सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को विज्ञापन के लिए 7 मिनट प्रति घंटा एयर टाइम की अनुमति होती है, जबकि टीवी चैनलों को 12 मिनट के एयर टाइम की इजाजत मिलती है। उन्होंने कहा कि वह समस्त रेडियो स्टेशनों को समान समय प्रदान करने के लिए उत्सुक हैं, ताकि उन्हें निधियों की मांग करने की आवश्यकता न हों और स्थानीय विज्ञापनों का प्रसारण सामुदायिक रेडियो स्टेशनों पर किया जा सके।7

अगर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा इस तरह का कोई निर्णय लिया जाता है तो कहीं न कहीं सामुदायिक रेडियो का संचालन करने वालों को राजस्व जुटाने में मदद मिलेगी जोकि किसी भी संचार के माध्यम को कायम रखने की जरूरी शर्त है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि एनजीओ अब सामुदायिक रेडियो के माध्यम से भी अपना विस्तार कर रहा है। अगर इसी तरह से एनजीओ द्वारा संचालित सामुदायिक रेडियो की संख्या बढ़ती रही तो कहीं ऐसा न हो कि सामुदायिक रेडियो स्टेशनों पर एनजीओ का ही प्रभुत्व हो जाए। जिस तरह से आज कुछ चुनिंदा मीडिया कंपनियों ही मुख्यधारा के मीडिया के रूप में जानी जाती है उसी तरह से कहीं एनजीओ ही सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का पर्याय न बन जाए क्योंकि इससे संचार में एक अंसतुलन की स्थिति बनती है। इस पहलू का भी अध्ययन किया जाना चाहिए कि किस तरह के गैर सरकारी संगठनों को सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने के लिए अब तक प्रोत्साहित किया गया है। यह भी जरूरी है कि शैक्षणिक संस्थानों और केवीके द्वारा भी सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को बढ़ावा दिया जाए। सरकार को भी सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के विकास पर जोर देना चाहिए। सामुदायिक रेडियो भले शार्ट-रेंज का माध्यम है लेकिन देश में संचार के क्षेत्र में इसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। 

संजय कुमार बलौदिया, मीडिया स्टडीज ग्रुप से जुड़े हैं और स्वतंत्र लेखन करते हैं।

रजनीश, वरिष्ठ पत्रकार हैं।

संदर्भ-          

  1. https://krishi.icar.gov.in/jspui/bitstream/123456789/45274/1/Community%20radio.pdf 
  2. https://www.etvbharat.com/hindi/chhattisgarh/state/raipur/community-radio-emerged-as-a-better-medium-of-education-and-communication-in-chhattisgarh/ct20210327222610223
  3. https://krishi.icar.gov.in/jspui/bitstream/123456789/45274/1/Community%20radio.pdf 
  4. https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/other-news/india-has-31-lakh-registered-ngos-twice-the-number-of-schools-and-government hospitals/articleshow/48304287.cms
  5. https://pqars.nic.in/qhindi/251/AU3266.pdf
  6. https://mib.gov.in/sites/default/files/List%20of%20CRSs%20obtained%20financial%20grant%20under%20the%20scheme%281%29.pdf
  7. https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1626183

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